श्री वेंकटेश बालाजी भगवान की कहानी ।part1

राधेराधे ..
ॐ नमो वेंकटेशाय...

आज जिस कथा के बारे में हम देखने वाले हैं वह है भगवान वेंकटेश की कथा है। भगवान वेंकटेश अर्थात श्रीबालाजी तिरुपति में स्थित तिरुमला अपनी दो पत्नियों के साथ वास करते है। उनकी दो पत्नियां अर्थात देवी लक्ष्मी और देवी पद्मावती। तो जानते हैं कि उन्होंने किस तरीके से धरती पर अवतार लिया।

एक बार सप्तर्षियों की सभा बैठी थी। उसमें यह विषय की चर्चा चल रही थी कि त्रिदेवों में सबसे श्रेष्ठ भगवान कौन है अतः सबसे ज्यादा शक्तिमान कौन है। तो सभीने भ्रगु मुनि को यह बोला कि आप जाकर यह सिद्ध करो त्रिदेवोंमें सबसे श्रेष्ठ भगवान कौन है? इस बात को लेकर भृगु मुनि निकल पड़े।
अत्यंत तपस्वी और अहंकारी ऋषि भृगु प्रथम ब्रम्ह लोक गए। वहां पर भगवान ब्रह्मा देवी सरस्वती की वीणा वादन सुनने में अत्यंत मग्न थे। उन्होंने ऋषि भृगु को देखा ही नहीं इसकी वजह से ऋषि वर को लगा यह मेरा अपमान है, और उन्होंने भगवान ब्रह्मा को श्राप दे दिया की धरती पर अर्थात भूलोक में तुम्हारी कहीं पर भी पूजा नहीं होंगी अतः तुम्हारे कहीं पर भी मंदिर नहीं होंगे यह बात कह कर ऋषि भृगु आगे निकल पड़े।


ब्रह्म लोक से अत्यंत क्रोध में ऋषि भृगु कैलाश की ओर निकल पड़े। वहां पर जाकर उन्होंने यह देखा की भगवान शंकर अपनी पत्नी देवी पार्वती के साथ आनंद तांडव में मग्न थे ।भगवान शिव ने भी ऋषि भृगु की ओर ध्यान नहीं दिया, क्रोध में आकर ऋषि भृगु ने भगवान शिव को यह श्राप दे दिया कि धरती पर तुम्हारी पूजा कभी भी नहीं होंगी सिर्फ तुम्हारे लिंग की पूजा होगी इसी वजह से शिव मंदिरों में भगवान शिव की कोई भी मूर्ति नहीं होती है मंदिरो में शिवलिंग की पूजा ही करते हैं।

कैलाश और ब्रह्म लोक में अपमान होने के कारण अत्यंत क्रोधित अवस्था में ऋषि भृगु वैकुंठ लोक की ओर चल पड़े ।वैकुंठ लोक में भगवान विष्णु अपनी पत्नी देवी लक्ष्मी समेत अपनी शेष शैया पर विराजमान थे। देवी लक्ष्मी उनकी सेवा कर रही थी और भगवान विष्णु ध्यान में विलीन थे ।जबकि भगवान विष्णु ने भी भृगु मुनि की तरह ध्यान नहीं दिया इसकी वजह से अत्यंत क्रोधित मुनि ने भगवान विष्णु की छाती पर लाथ मार दी।

 इसके कारण देवी लक्ष्मी अत्यंत क्रोध में आ गई परंतु शांत स्वभाव के भगवान विष्णु उठ कर यह कहने लगे, "मुनिवर मेरे कठोर छाती के कारण आपके पैरों में पीड़ा हो रही होंगी "ऐसा कह कर भगवान विष्णु मुनि भ्रगु के पैर दबाने लगे और पैर दबाते दबाते उन्होंने ऋषि भृगु की अहंकार की नेत्र को उनके तलवे में लाया और उसको दबा के चीर डाला। 


अहंकार नष्ट होने के कारण भृगु ऋषि को अपनी भूल समझ में आ गई उन्होंने अत्यंत दुखी अंतकरण से भगवान विष्णु की माफी मांग ली और वहां से चले गये। किंतु इस बात से लक्ष्मी देवी को बहुत पीड़ा हुई । उन्हें यह अपमान लगा और वह वैकुंठ छोड़कर चली गई। 
देवी लक्ष्मी के चले जाने से भगवान विष्णु श्रीहीन हो गए अतः वह भी देवी लक्ष्मी के पीछे पीछे धरती लोक पर आ गए।

आगे की कथा पार्ट 2 में.........

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